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राम रतन एक ऐसा बच्चा था, जो बिना सोच-समझ के काम करता था और फिर पछताता था। उसके माता-पिता और मित्रों ने उसे कई बार समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं सुधरा।
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घर में अगर कॉपी-पेंसिल नहीं मिलती, तो वह बहुत हल्ला मचाता था, जिससे उसके पिताजी को उसे डांटना पड़ता था। उसे धैर्य रखने की सीख दी गई थी, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ।
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समय बीतने के साथ, राम रतन बड़ा हो गया और कॉलेज में पढ़ाई के लिए शहर गया। वहाँ उसने होटल में ठहरने का इंतजाम किया।
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घर से निकलते समय उसकी मम्मी ने उसे अपनी चीजें संभाल कर रखने की सलाह दी थी, लेकिन राम रतन ने इस पर ध्यान नहीं दिया।
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होटल में उसने अपना सामान बेतरतीब ढंग से रखा। अगले दिन उसे पेन नहीं मिला और उसने बिना सोचे-समझे होटल के मैनेजर पर चोरी का आरोप लगाया।
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मैनेजर ने उसे समझाया कि ऐसा आरोप लगाना ठीक नहीं है और राम रतन के साथ जाकर पेन ढूंढने में मदद की। पेन ड्रेसिंग टेबल की दरार में फंसा हुआ मिला।
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राम रतन को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने मैनेजर से माफी मांगी। उसने इस घटना को एक सबक के रूप में याद रखने का वादा किया।
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यह कहानी हमें सिखाती है कि बिना सोच-समझ के आरोप लगाना और उतावलापन दिखाना ठीक नहीं है।
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धैर्य और समझदारी से काम लेना महत्वपूर्ण है।
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