हिंदी प्रेरक कहानी: परदुःख कातरता

Jun 09, 2025, 12:01 PM

परदुःख कातरता

चैतन्य महाप्रभु और रघुनाथ पण्डित एक बार नाव में सैर कर रहे थे, जिस दौरान महाप्रभु ने न्याय शास्त्र पर लिखे अपने ग्रंथ का कुछ अंश सुनाने की इच्छा जताई।

परदुःख कातरता

रघुनाथ पण्डित, जो स्वयं एक विद्वान थे, ने महाप्रभु से ग्रंथ सुनाने का अनुरोध किया। महाप्रभु ने अपनी पाण्डुलिपि से कुछ अंश पढ़कर सुनाए।

परदुःख कातरता

ग्रंथ सुनने के बाद रघुनाथ पण्डित का चेहरा मलिन हो गया, जिसे देख महाप्रभु ने उनके उदासी का कारण पूछा।

परदुःख कातरता

रघुनाथ पण्डित ने बताया कि उन्होंने भी न्याय पर एक ग्रंथ लिखा था और उन्हें डर था कि महाप्रभु के ग्रंथ के सामने उनके ग्रंथ की कोई चर्चा नहीं होगी।

परदुःख कातरता

चैतन्य महाप्रभु ने रघुनाथ पण्डित की भावना समझते हुए अपनी पाण्डुलिपि को नदी में बहा दिया, जिससे रघुनाथ पण्डित आश्चर्यचकित रह गए।

परदुःख कातरता

इस घटना से रघुनाथ पण्डित ने महाप्रभु की परदुःख कातरता (दूसरों के दुख को समझने की क्षमता) को सराहा और उनकी महानता को नमन किया।

परदुःख कातरता

कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची विद्वत्ता और उदारता में दूसरों की भावनाओं का सम्मान करना और उनके दुख को समझना शामिल है।

परदुःख कातरता

चैतन्य महाप्रभु का यह कार्य दर्शाता है कि महानता का असली अर्थ दूसरों की खुशी और संतोष में निहित है।

परदुःख कातरता

यह कहानी बच्चों और बड़ों के लिए प्रेरणादायक है, जो सिखाती है कि प्रतिस्पर्धा के बजाय सहानुभूति और सहयोग का महत्व है।