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हरिपुर के राजा भद्रसेन अपनी न्यायप्रियता और दयालु स्वभाव के लिए प्रसिद्ध थे।
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एक दिन एक देवता ने राजा की दयालुता से प्रभावित होकर उन्हें एक विशेष तलवार भेंट की, जो उन्हें विश्व विजेता बना सकती थी, लेकिन राजा ने इसे अस्वीकार कर दिया क्योंकि उन्हें युद्ध से घृणा थी।
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देवता ने फिर राजा को दुर्लभ हीरा देने की पेशकश की, जो उनके राजकोष को धन से भर सकता था, लेकिन राजा ने इसे भी अस्वीकार कर दिया, यह कहते हुए कि प्रजा से जो धन मिलता है, वही पर्याप्त है।
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देवता ने राजा को स्वर्ग ले जाने का प्रस्ताव दिया, लेकिन राजा ने इसे भी ठुकरा दिया, क्योंकि उनके लिए उनकी जन्मभूमि स्वर्ग से बढ़कर थी।
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अंत में, देवता ने राजा को विशेष पुष्पों के बीज दिए, जो मित्र और शत्रु को वैरभाव भूलाकर प्रेम से गले मिलाने में सक्षम थे।
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राजा ने इन बीजों को खुशी-खुशी स्वीकार किया और कहा कि यही सौगात उनके लिए सबसे अनमोल है, क्योंकि इससे उनकी प्रजा सुख-शांति और प्रेमभाव से रह सकेगी।
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राजा भद्रसेन की इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है
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कि सच्ची खुशी और संतोष बाहरी भौतिक वस्तुओं में नहीं, बल्कि आंतरिक शांति और प्रेम में है।
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यह प्रेरक कहानी इस बात पर जोर देती है कि सच्चे नेता का कर्तव्य अपनी प्रजा की भलाई और उनके साथ प्रेमपूर्ण संबंध बनाए रखना होता है।
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