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एक जिज्ञासु व्यक्ति भगवान बुद्ध के पास पहुंचा और जीवन के मूल्य का अर्थ जानना चाहा। बुद्ध ने उसे एक चमकदार पत्थर दिया और कहा, "इसकी कीमत पता करो, लेकिन इसे बेचना मत।"
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व्यक्ति ने पहले फल विक्रेता से पूछा, जिसने पत्थर के बदले 12 संतरे देने की पेशकश की। व्यक्ति ने उसे मना कर दिया और आगे बढ़ गया।
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सब्जी वाले ने पत्थर को एक बोरी आलू के बदले लेने की पेशकश की, लेकिन व्यक्ति ने इसे फिर से मना कर दिया।
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जब वह सुनार के पास गया, तो सुनार ने पत्थर को अनमोल बताया और दो करोड़ रुपये देने की पेशकश की, लेकिन व्यक्ति ने उसे भी मना कर दिया।
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जौहरी ने पत्थर को बेशकीमती रूबी बताया और कहा कि पूरी दुनिया की दौलत भी इसकी कीमत नहीं चुका सकती।
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व्यक्ति ने बुद्ध के पास लौटकर अपनी यात्रा के अनुभव बताए। बुद्ध ने समझाया कि यह पत्थर व्यक्ति के जीवन का प्रतीक है, और हर कोई उसकी कीमत अपने ज्ञान और समझ के अनुसार लगाता है।
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बुद्ध ने कहा कि असली मूल्य वही है जो व्यक्ति खुद के अंदर समझता है। यदि वह खुद को अनमोल मानेगा, तो दुनिया भी उसे अनमोल मानेगी।
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यह कहानी हमें सिखाती है कि हमारा असली मूल्य दूसरों की सोच पर नहीं,
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बल्कि हमारी अपनी धारणा और आत्म-समझ पर निर्भर करता है। खुद पर विश्वास रखें।
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