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कहानी मस्तीपुर गाँव की है, जहाँ एक पुराना बरगद का पेड़ लोगों का जमावड़ा होता था और सभी ढाई अक्षर के ज्ञान की चर्चा करते थे।
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मस्तमौला मंगल, जो गाँव का चुलबुला लड़का था, इस रहस्यमयी ज्ञान को समझने के लिए एक साहसिक यात्रा पर निकल पड़ता है।
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मंगल के साथ उसका दोस्त चिंटू भी जुड़ जाता है, और दोनों मिलकर ढाई अक्षर के ज्ञान की खोज में निकलते हैं।
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उनकी यात्रा में तीन पहेलियाँ आती हैं, जिन्हें सुलझाने के बाद उन्हें ढाई अक्षर का ज्ञान मिलता है।
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पहली पहेली सपना होती है, दूसरी मछली, और तीसरी उल्लू, जिन्हें मंगल और चिंटू हल कर लेते हैं।
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गुफा में उन्हें पता चलता है कि ढाई अक्षर का ज्ञान 'प्रेम' है, जो जानना आसान है पर जीना मुश्किल।
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गाँव लौटकर मंगल इस ज्ञान को साझा करता है कि प्रेम हर रिश्ते और काम में होना चाहिए।
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मंगल और चिंटू ने गाँव में हर रविवार को मजेदार कहानियाँ सुनाने की परंपरा शुरू की, जिससे प्रेम और दोस्ती का संदेश फैलाया।
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कहानी का नैतिक संदेश यह है कि प्रेम के बिना कोई भी ज्ञान अधूरा है।
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यह कहानी अब भी मस्तीपुर में सुनाई जाती है और इसे सुनकर लोग हँसी के साथ गहरी सीख भी प्राप्त करते हैं।
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