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यह कहानी एक तेली और एक दार्शनिक की मुलाकात को दर्शाती है, जिसमें एक साधारण बैल की दिनचर्या से जीवन के गहरे सबक मिलते हैं।
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कहानी ग्रामीण जीवन के एक सुंदर दृश्य से शुरू होती है, जहाँ तेली का बैल कोल्हू को घुमाने में व्यस्त रहता है और एक दार्शनिक वहाँ पहुँचते हैं।
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दार्शनिक बैल की आँखों पर बंधी पट्टी देखकर तेली से सवाल करते हैं, जिसके जवाब में तेली बताते हैं कि पट्टी के बिना बैल अपने काम को समझ जाएगा और रुक जाएगा।
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तेली ने बैल के गले में घंटी बांध रखी है ताकि जब बैल चलता है, तो घंटी बजती रहे। लेकिन दार्शनिक सोचते हैं कि बैल अपनी गर्दन हिलाकर घंटी बजा सकता है।
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शाम को सच में बैल रुक जाता है और अपनी गर्दन हिलाकर घंटी बजाने लगता है, जिससे तेली और दार्शनिक एक नई समस्या का सामना करते हैं।
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दोनों मिलकर समस्या का समाधान निकालते हैं और बैल के पैर में एक और घंटी बांधते हैं ताकि यदि बैल रुकता है, तो केवल गले की घंटी बजे।
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इस घटना के बाद तेली और दार्शनिक नियमित रूप से मिलने लगते हैं और समझदारी और सहयोग से समस्याओं का समाधान करना सीखते हैं।
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कहानी से यह सीख मिलती है कि अनावश्यक बहस से बचना चाहिए और समझदारी से समस्याओं का हल निकालना चाहिए।
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यह कहानी बच्चों और बड़ों दोनों के लिए प्रेरणादायक है।
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