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एक छोटे क़स्बे के ट्रांसपोर्टर चंचल की कहानी है, जो लालच के कारण अपने वफ़ादार सहायक राजू और कालू को छोड़ देता है, ताकि वह बड़ी दौलत हासिल कर सके।
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चंचल की कंपनी "रफ़्तार कूरियर सेवा" में सिर्फ़ एक पुरानी वैन थी, जिसे राजू और कालू की मेहनत से चलाया जाता था, पर चंचल अपने छोटे व्यापार से संतुष्ट नहीं था।
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एक दिन, चंचल को बड़े ट्रांसपोर्टर बलवान सिंह के ट्रकों को देखकर लालच आ जाता है और वह अपने सहायकों को छोड़ने का निर्णय लेता है।
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तूफ़ान के दौरान चंचल अपने वफ़ादार सहायकों को निकाल देता है और बलवान सिंह के ट्रकों को चुराने की योजना बनाता है।
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चंचल की योजना असफल हो जाती है जब बलवान सिंह और उनके गार्ड ट्रकों को सुरक्षित बचा लेते हैं, और चंचल खाली हाथ रह जाता है।
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अपनी गलती का एहसास होने पर, चंचल को समझ आता है कि लालच का फल हमेशा शून्य होता है और उसने अपने सबसे कीमती रिश्ते खो दिए हैं।
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दादा ज्ञानचंद की सीख के बाद, चंचल राजू और कालू से माफ़ी माँगता है और उन्हें वापस बुलाने की कोशिश करता है।
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कहानी का मुख्य संदेश है कि लालच में आकर अपने वफ़ादार साथियों और रिश्तों को नहीं त्यागना चाहिए, क्योंकि वफ़ादारी और संतोष ही असली दौलत होती है।
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यह प्रेरणादायक कहानी सिखाती है कि स्वार्थ में आकर अपनों को छोड़ने वाला अंत में अकेला रह जाता है।
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