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सोनजूही एक छोटा सा गाँव है, जहाँ धरमचन्द मुखिया है। उनके पास बहुत सारी खेती-बाड़ी है और किसी भी चीज़ की कमी नहीं है।
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जाड़े के मौसम में धरमचन्द के पास एक पुराना कोट था। सरपंच जालिम सिंह ने उन्हें नया कोट सिलवाने की सलाह दी।
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धरमचन्द ने नया कोट सिलवाया, लेकिन जब उनका नौकर मंगलू ने उनसे पुराना कोट माँगा, तो उन्होंने मंगलू को नया कोट दे दिया।
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धरमचन्द का मानना था कि पुराना कोट मंगलू के लिए ज्यादा दिन नहीं टिकेगा, इसलिए उन्होंने नया कोट देने का फैसला किया।
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सरपंच जालिम सिंह को धरमचन्द की दानशीलता और सहृदयता देखकर आश्चर्य हुआ और उनकी धारणा धरमचन्द के प्रति बदल गई।
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धरमचन्द ने दिखाया कि दूसरों की जरूरतों को प्राथमिकता देना और समझदारी से दान करना ही सच्चा परोपकार है।
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इस कहानी से यह सीख मिलती है कि दूसरों की मदद करना और उनके सुख-दुख की चिंता करना इंसान को महान बनाता है।
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धरमचन्द का व्यवहार यह दर्शाता है कि परोपकार और सहृदयता के साथ-साथ समझदारी भी महत्वपूर्ण है,
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ताकि दान का सही लाभ हो सके।
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