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हीरालाल की कहानी एक दस वर्षीय लड़के की है, जिसके माता-पिता का देहांत बिजली के चपेट में आने से हो गया था। उसके माता-पिता एक ज़मींदार के लिए काम करते थे।
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माता-पिता की मृत्यु के बाद, ज़मींदार ने हीरालाल पर दया दिखाते हुए उसे अपने घर में जगह दी और खाने की व्यवस्था की, हालांकि उसे घर के काम भी करने पड़ते थे।
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हीरालाल को ज़मींदार के परिवार के साथ रहने का मौका मिला, जहां उसे तीन समय का खाना मिलता था और वह परिवार के आराम के समय ही आराम कर सकता था।
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दो साल बाद, ज़मींदार ने देखा कि हीरालाल अब काम करने के लिए तैयार है और उसे खेतों में काम करने के लिए भेज दिया, जहां उसके माता-पिता के बाद दो नए लोग काम कर रहे थे।
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खेत में काम करने वाला दूसरा कर्मचारी आलसी था और हीरालाल पर काम का बोझ आ गया। हीरालाल ने ज़मींदार से शिकायत करने की बजाय खुद के लिए अलग रहने का निर्णय लिया।
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हीरालाल ने ज़मींदार को धन्यवाद दिया और बनारस जाने का निर्णय लिया, जहां वह अपनी मर्जी का काम खोज सके और स्वतंत्र जीवन जी सके।
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बनारस पहुंचकर, हीरालाल ने अपनी पसंद का काम ढूंढा और मेहनत से काम कर खुश रहने लगा,
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अब वह किसी पर निर्भर नहीं था।
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यह कहानी स्वतंत्रता, आत्मनिर्भरता और कठिनाइयों के बावजूद आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।
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