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मिंकी खरगोश और चुनमुन कछुए की कहानी एक गहरी दोस्ती पर आधारित है, जो कभी-कभी छोटी-छोटी बातों पर बहस और लड़ाई में बदल जाती थी, लेकिन फिर भी वे जल्दी ही सब भूलकर एक हो जाते थे।
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दोनों की आदत थी अपनी श्रेष्ठता साबित करने की, जो अक्सर विवाद का कारण बनती थी। मिंकी ने अपनी तेज़ी और फुर्ती की बात की, जबकि चुनमुन ने अपने पूर्वजों की जीत का उदाहरण दिया।
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बहस के समाधान के लिए, दोनों भोलू हाथी दादा के पास गए। भोलू ने उनकी बात सुनकर हँसते हुए उन्हें मूर्ख कहा और समझाया कि श्रेष्ठता की शेखी बघारने के बजाय अपने पूर्वजों से सीख लेनी चाहिए।
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भोलू ने मिंकी को सिखाया कि किसी भी काम को हल्के में नहीं लेना चाहिए और लापरवाही से बचना चाहिए। चुनमुन को मेहनत, लगन और दृढ़ संकल्प के साथ कार्य करने का महत्व बताया।
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भोलू ने यह भी कहा कि व्यर्थ की बहस छोड़कर अतीत से प्रेरणा लेकर जीवन में कुछ बड़ा करने की कोशिश करनी चाहिए ताकि लोग खुद ही उनकी महानता को पहचानें।
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भोलू की बात समझकर मिंकी और चुनमुन को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने भविष्य में ऐसी बहस न करने की कसम खाई।
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दोनों ने भोलू दादा का शुक्रिया अदा किया और दोस्ती में फिर से लौट आए, यह समझते हुए कि सच्ची महानता कामों से साबित होती है, न कि बातों से।
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इस कहानी से यह सीख मिलती है कि हमें अपने अनुभवों और पूर्वजों से सीख लेकर जीवन में आगे बढ़ना चाहिए
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और व्यर्थ की बातों में समय नहीं गंवाना चाहिए।
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