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मस्तीपुर के राजा वीरेंद्र सिंह, जो जिज्ञासु और दयालु स्वभाव के थे, हर सुबह अपने प्रजा की स्थिति जानने के लिए सैर पर निकलते थे।
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एक सुबह, राजा ने एक मेहनती किसान से मुलाकात की, जिसने अपनी कमाई का गणित समझाकर उन्हें प्रभावित किया। किसान ने बताया कि वह अपनी कमाई को चार हिस्सों में बांटता है: खुद के लिए, बच्चों की शिक्षा के लिए, माता-पिता की सेवा के लिए, और दान के लिए।
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राजा को किसान की बुद्धिमत्ता और ईमानदारी से प्रेरणा मिली और उन्होंने उसे सोने के सिक्कों की थैली भेंट की।
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राजा ने सोचा कि अगर एक साधारण किसान जीवन का गणित समझ सकता है, तो उनके राज्य के अन्य लोग भी इसे सीख सकते हैं।
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उन्होंने "जीवन का गणित" नामक एक अभियान शुरू करने का निर्णय लिया, जिसमें किसान जैसे साधारण लोग अपने जीवन के अनुभव साझा करेंगे।
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किसान रामू को इस अभियान का प्रमुख बनाया गया। उसने राज्य के विभिन्न गाँवों में जाकर लोगों को समझाया कि मेहनत के साथ-साथ सही योजना बनाना भी जरूरी है।
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रामू ने लोगों को सिखाया कि धन के अलावा समय, मेहनत और प्रेम भी पूँजी हैं, और इन्हें सही तरीके से बांटने पर जीवन सुखमय हो सकता है।
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रामू की शिक्षाएँ गाँव-गाँव में फैलने लगीं, जिससे लोग अपने संसाधनों का बुद्धिमानी से उपयोग करने लगे और राज्य में खुशहाली बढ़ी।
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कुछ महीनों बाद, राजा ने रामू को सलाहकार मंडल में शामिल किया और रामू ने लोगों को जीवन का गणित न भूलने का संदेश दिया।
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इस कहानी से यह सीख मिलती है कि जीवन का गणित केवल धन का नहीं, बल्कि प्रेम, कर्तव्य और सेवा का संतुलन है, जिससे जीवन अर्थपूर्ण और सुखमय बनता है।
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