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कुछ बच्चे खेतों में काम कर रहे किसान के जूतों को देखकर शरारत करने की सोचते हैं, लेकिन उनमें से एक बच्चा, रवि, उन्हें एक नेक विचार देता है।
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रवि सुझाव देता है कि जूतों में कंकड़ भरने के बजाय, कुछ सिक्के डाल दें ताकि किसान खुश हो सके। सभी बच्चे इस विचार से सहमत होते हैं।
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बच्चे किसान के जूतों में सिक्के डालते हैं और छिपकर देखते हैं कि किसान की क्या प्रतिक्रिया होगी।
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जब किसान जूते पहनता है और सिक्के पाता है, तो वह बहुत खुश और हैरान हो जाता है। वह भगवान का शुक्रिया अदा करता है कि अब वह अपने बच्चों को खाना खिला पाएगा।
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बच्चों को किसान की खुशी देखकर बहुत आनंद और संतोष मिलता है। उन्हें महसूस होता है कि दूसरों को खुशी देने में सच्चा आनंद है।
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इस अनुभव के बाद, बच्चे यह निर्णय लेते हैं कि वे हमेशा ऐसे काम करेंगे जिससे दूसरों को खुशी मिले। वे एक 'खुशी बाँटो' क्लब बनाते हैं और जरूरतमंदों की मदद करते हैं।
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कुछ समय बाद, किसान बच्चों को पहचानता है और उन्हें धन्यवाद देता है, यह बताते हुए कि उनके छोटे से कार्य ने उसके जीवन में बहुत बड़ा बदलाव लाया।
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कहानी का नैतिक यह है कि मज़ाक ऐसा होना चाहिए जिससे किसी को तकलीफ न हो और दूसरों को खुशी देने में असली संतोष मिलता है।
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दयालुता और परोपकार के छोटे-छोटे कार्य भी किसी के जीवन में बड़ा बदलाव ला सकते हैं।
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