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कहानी "तुम कब बड़े होगे?" एक तेरह वर्षीय लड़के राजा के बारे में है, जिसे उसकी मां अक्सर यह सवाल पूछती थीं क्योंकि वह अपनी उम्र के बच्चों और बड़ों के बीच संतुलन नहीं बना पा रहा था।
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राजा का परिवार एक खुशहाल परिवार था, जो अपने गांव से शहर में बस गया था क्योंकि गांव में सूखे के कारण काम की कमी थी। राजा के पिता बढ़ई थे और उन्होंने शहर में काम पा लिया था।
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राजा फुटबॉल का अच्छा खिलाड़ी था और उसे एक अच्छे स्कूल में दाखिला मिला था। वह स्कूल जाने और लौटने के लिए बैलगाड़ी में लिफ्ट लेता था।
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एक दिन बैलगाड़ी वाले ने राजा से सामान उतारने में मदद मांगी, और राजा ने उसकी मदद कर दी। उसके बाद से राजा ने रोज़ थोड़ा-बहुत काम करना शुरू कर दिया और कुछ पैसे कमाए।
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राजा की मां को सजने-संवरने का शौक था, लेकिन उनके पास एक टूटा हुआ शीशा था। राजा ने अपनी कमाई से एक नया शीशा खरीदा और चुपचाप घर में रख दिया।
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जब राजा की मां ने नया शीशा देखा, तो वे बहुत खुश हुईं और उनके पति को धन्यवाद देना चाहा। राजा ने तब उन्हें बताया कि यह शीशा उसने अपनी कमाई से खरीदा है।
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राजा के माता-पिता को यह जानकर बहुत खुशी हुई और उसकी मां ने उसे बड़े होने का प्रमाण मान लिया।
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कहानी से यह सीख मिलती है कि मेहनत और सकारात्मक सोच से हम अपने परिवार को खुश कर सकते हैं
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और बच्चों को अपनी जिम्मेदारियों को समझना चाहिए।
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