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एक युवा बेटे ने अपनी मां के अंतिम संस्कार के बाद अपने दुखी पिता को अपने साथ रहने का प्रस्ताव दिया, लेकिन पिता वृद्धाश्रम में रहने की योजना बना रहे थे।
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बेटे ने अपने पिता को समझाया कि उनका बड़ा बंगला है और पोता भी दादा की संगत में रहना पसंद करता है, इसलिए पिता को उनके साथ रहना चाहिए।
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प्रारंभ में, परिवार में सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था और सभी एक-दूसरे का ख्याल रखते थे।
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समय के साथ, बेटे और बहू को पिता की आदतों से परेशानी होने लगी और रिश्तों में दरारें आने लगीं।
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बेटे ने एक दिन पिता को बालकनी में रहने के लिए कहा, जिससे पोता नाराज हो गया।
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बेटे ने अंततः पिता से घर छोड़ने के लिए कह दिया, लेकिन पोते की प्रतिक्रिया ने बेटे को उसकी गलती का एहसास कराया।
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पोते ने पिता का कम्बल वापस लाकर बेटे को सबक सिखाया, जिससे बेटे को यह समझ में आया कि जैसा वह अपने पिता के साथ करेगा, वैसा ही उसके साथ भी हो सकता है।
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बेटे ने अपने पिता से क्षमा मांगी और उन्हें सम्मानपूर्वक घर ले आया,
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यह समझते हुए कि उसे अपने पिता के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए।
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