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एक राजा अकेले जंगल से गुजरते हुए डाकू भीलों की बस्ती के पास पहुंचता है, जहां पिंजरे में बंद एक तोता चिल्लाता है, "पकड़ो! मार डालो इसे!"।
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राजा समझ जाता है कि वह डाकुओं के क्षेत्र में है और तेजी से अपने घोड़े को दौड़ा देता है, जिससे वह डाकुओं से बच निकलता है।
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भागते हुए राजा एक अन्य कुटिया के पास पहुंचता है, जहां एक पिंजरे में दूसरा तोता बड़े ही मीठे स्वर में उसका स्वागत करता है।
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साधु और उनके शिष्य राजा का स्वागत करते हैं। राजा साधु से पूछता है कि एक ही जाति के तोतों के स्वभाव में इतना अंतर क्यों है।
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तोता जवाब देता है कि वह और दूसरा तोता एक ही माता-पिता की संतान हैं, लेकिन उसे डाकू ले गए और दूसरे को मुनि ने पाला।
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पहला तोता डाकुओं की संगति में हिंसक बातें सुनता है,
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जबकि दूसरा साधु के सान्निध्य में मधुर वचन सुनता है।
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साधु समझाते हैं कि "जैसी संगति वैसी मति" यानी संगति का प्रभाव व्यक्ति के स्वभाव पर पड़ता है।
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कहानी से यह सीख मिलती है कि हमारे संगति का हमारे विचारों और व्यवहार पर गहरा असर होता है।
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