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उज्जयिनी के राजा भोज ने एक स्वप्न में दिव्य पुरुष को देखा, जिसने खुद को सत्य बताया और कहा कि वह राजा का भ्रम दूर करने आया है।
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राजा भोज को इस बात पर आश्चर्य हुआ क्योंकि वह धार्मिक कार्यों में बहुत धन खर्च करता था और उसे अपने कार्यों पर गर्व था।
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सत्य ने राजा की परीक्षा लेने का प्रस्ताव रखा, जिसे राजा ने स्वीकार कर लिया।
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राजा ने तीन फलों से लदे वृक्ष दिखाए, जिनके फल उसकी दानशीलता, न्यायप्रियता और तपस्या के प्रतीक थे।
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सत्य ने उन फलों को छूआ और वे सभी गिर गए, जिससे केवल ठूंठ पेड़ बचे रह गए।
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सत्य ने राजा को बताया कि उसके सभी कार्य स्वार्थ और प्रतिष्ठा के लिए थे, न कि निष्काम भाव से।
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सत्य के तर्कों के सामने राजा निरुत्तर हो गया और उसे अपने कार्यों की सच्चाई समझ आई।
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यह कहानी इस बात पर जोर देती है कि सच्चे और निस्वार्थ कार्य ही वास्तविक फल देते हैं,
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न कि दिखावे और स्वार्थ से प्रेरित कार्य।
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