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मगध राज्य के सोनापुर गाँव में डाकू अंगुलिमाल के आतंक से लोग डरे हुए थे, जो लूटपाट करता और लोगों की उंगलियों की माला बनाता था।
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गौतम बुद्ध गाँव में आए और गाँव वालों से अंगुलिमाल के आतंक की कहानी सुनी। उन्होंने लोगों की चिंता को समझते हुए जंगल की ओर कदम बढ़ाया।
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अंगुलिमाल ने बुद्ध को रोकने की कोशिश की, लेकिन उनके दिव्य प्रभाव के कारण वह उन्हें पकड़ नहीं सका।
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बुद्ध ने अंगुलिमाल को समझाया कि यदि वह पेड़ से तोड़ी गई पत्तियों को वापस नहीं जोड़ सकता, तो वह सबसे शक्तिशाली कैसे हो सकता है।
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बुद्ध ने उसे यह भी बताया कि यदि वह किसी चीज़ को जोड़ नहीं सकता, तो उसे तोड़ने का भी अधिकार नहीं है, और जीवन देने में सक्षम नहीं है तो मृत्यु देने का भी अधिकार नहीं है।
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बुद्ध की बातों से प्रभावित होकर अंगुलिमाल को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह बुद्ध का शिष्य बन गया।
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अंगुलिमाल ने अपने बुरे कर्मों को छोड़कर गाँव में रहकर लोगों की सेवा करने का संकल्प लिया।
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आगे चलकर अंगुलिमाल अहिंसका के नाम से प्रसिद्ध एक महान सन्यासी बना।
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इस कहानी से यह सीख मिलती है कि कोई भी व्यक्ति कितना भी बुरा क्यों न हो, वह बदल सकता है, और हमें अपनी बुराइयों को पहचानकर उन्हें खत्म करने की कोशिश करनी चाहिए।
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