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एक फकीर ने सम्राट के द्वार पर दस्तक दी और अपना पात्र उसके सामने कर दिया, यह अनुरोध करते हुए कि उसमें कुछ भी डाल दिया जाए, बशर्ते कि पात्र भर जाए।
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सम्राट ने इसे एक छोटे से पात्र के रूप में देखा और अपने सेवकों को इसे सोने और हीरे-जवाहरात से भरने का आदेश दिया।
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जैसे-जैसे सम्राट ने खजाना पात्र में डाला, वह रहस्यमय तरीके से गायब होता गया, और पात्र कभी नहीं भरा।
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सम्राट का पूरा खजाना खाली हो गया, लेकिन पात्र फिर भी अधूरा रहा, जिससे उसे अपनी भूल का एहसास हुआ।
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अंत में, सम्राट ने हार मान ली और फकीर के चरणों में गिरकर क्षमा मांगी, यह स्वीकार करते हुए कि उसका खजाना भी अपूर्ण है।
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फकीर ने बताया कि यह पात्र इंसान की लालसा से बना है, जो कभी पूरी नहीं होती, जैसे यह पात्र कभी नहीं भरता।
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यह कहानी इंसानी लालसा और इच्छाओं की अनंतता को दर्शाती है, जो कभी संतुष्ट नहीं होतीं।
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यह एक नैतिक कहानी है जो हमें सिखाती है कि भौतिक इच्छाओं का कोई अंत नहीं होता
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और हमें अपनी लालसाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए।
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