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रामपुर के सेठ रामलाल एक समझदार, दानी और नेकदिल इंसान थे जिनको गांव के सभी लोग पसंद करते थे।
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एक दिन, सेठ रामलाल को उनके दरबान ने बताया कि गांव में एक पहुंचे हुए महात्मा आए हैं, जिससे मिलने की सेठ की इच्छा हुई।
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सेठ ने महात्मा के लिए एक कीमती हीरे से जड़ी अंगूठी और कुछ भेंट लेकर उनसे मिलने का निर्णय लिया।
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महात्मा से मिलने पर, सेठ ने देखा कि वे एक साधारण व्यक्ति के सवालों का प्रेमपूर्वक जवाब दे रहे थे, जो सेठ को मूर्ख प्रतीत हो रहा था।
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सेठ ने महात्मा से पूछा कि वे उस व्यक्ति पर क्यों समय बर्बाद कर रहे हैं, जिसे वह मूर्ख समझते हैं।
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महात्मा ने सेठ को समझाया कि जैसे हीरे खानों से धूल-मिट्टी में लिपटे निकलते हैं और मेहनत से तराशे जाते हैं, वैसे ही लोग भी होते हैं जिन्हें तराशने की जरूरत होती है।
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महात्मा की इस सीख से सेठ ने अपनी गलती को समझा और उनकी सोच को सही दिशा देने के लिए महात्मा का धन्यवाद किया।
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महात्मा की यह कहानी यह सिखाती है कि हर व्यक्ति में छिपी हुई संभावनाएं होती हैं, जिन्हें सही मार्गदर्शन और परिश्रम से निखारा जा सकता है।
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