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बहुत समय पहले, एक छोटे से गांव में एक गरीब मूर्तिकार रहता था जो मूर्तियों का निर्माण करके अपनी आजीविका चलाता था।
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उसका बेटा, गुणीराम, परिश्रमी और नेकदिल था और अपने पिता के काम में मदद करता था। उसकी मां की मृत्यु के बाद, वह अपनी सौतेली मां के साथ रहता था।
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एक दिन, जंगल में एक साधु बाबा ने गुणीराम को एक विशेष छैनी-हथोड़ी दी, जिससे वह अद्वितीय मूर्तियां बना सकता था, लेकिन साधु ने उसे लालच से बचने की चेतावनी दी।
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गुणीराम ने इस छैनी-हथोड़ी से सुंदर मूर्तियों का निर्माण शुरू किया, जिससे उसकी परिवार की दरिद्रता समाप्त हो गई और उनकी मूर्तियां अच्छे दामों पर बिकने लगीं।
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राजा ने शाही महल के लिए सुंदर मूर्तियां बनाने का ऐलान किया, जिसमें गुणीराम भी शामिल हुआ। उसने अद्भुत मूर्तियां बनाईं और राजा की प्रशंसा पाई।
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लालच के कारण, गुणीराम ने साधु बाबा की चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया और अधिक मूर्तियां बनाने के लिए मेहनत करने लगा।
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सातवीं मूर्ति बनाते समय, उसका हाथ घायल हो गया और छैनी-हथोड़ी खो गई। उसे साधु बाबा की चेतावनी याद आ गई और वह पछताने लगा।
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अंततः, गुणीराम ने फिर कभी लालच न करने की कसम खाई और लगन से मूर्तियां बनाने में जुट गया,
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जिससे उसे कभी किसी चीज का अभाव नहीं हुआ।
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