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एक गधा जिसका नाम झब्बू था, रोज़ सुबह गंदे कपड़ों का ढेर ढोकर नदी के घाट पर जाता और दिन भर घास चरता था।
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झब्बू अपने चेहरे को देखकर भगवान को कोसता और सोचता कि अगर वह शेर जैसा होता तो कोई उसे गधा नहीं कहता और उसका सम्मान होता।
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एक दिन उसने शेर की खाल पहनकर खुद को शेर के रूप में प्रस्तुत किया और धोबी को डरा दिया, जिससे उसे यकीन हो गया कि वह असली शेर नजर आता है।
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उसने अपने गधे दोस्तों को भी अपनी नई पहचान के बारे में बताया और उनका अपमान किया, जिससे वे उसे छोड़कर चले गए।
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शेरों के बीच जाकर उसने खुद को शेर समझा, लेकिन जब उसने गधे की आवाज में बोलना शुरू किया, तो असली शेरों ने उसे पहचान लिया और उस पर हमला कर दिया।
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भागते-भागते वह वापस अपने गधे दोस्तों के पास पहुंचा, लेकिन उन्होंने उसका सम्मान करने की बजाय उसकी शेर की खाल को चिथड़े-चिथड़े कर दिया।
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झब्बू को धोबी के पास ले जाया गया और उसे डंडे खाने पड़े,
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जिससे उसे समझ आया कि झूठे सम्मान के लिए अपने दोस्तों का अपमान करना सही नहीं था।
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इस कहानी का नैतिक यह है कि झूठे सम्मान के चक्कर में पड़कर अपने दोस्तों का अपमान करने वालों को अंततः नुकसान ही होता है।
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