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एक गरीब मजदूर उत्तर भारत के एक गांव में रहता था, जो घने जंगलों और पहाड़ों के किनारे बसा हुआ था। डाकू अक्सर इस गांव पर हमला करते थे और लोगों की संपत्ति लूट लेते थे।
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एक व्यापारी रात के समय गांव पहुंचा और मजदूर के घर में रात बिताने की अनुमति मांगी। मजदूर ने अपने घर में अतिथि का स्वागत किया और उसे भोजन व सोने की व्यवस्था की।
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आधी रात को डाकुओं ने गांव पर हमला कर दिया। मजदूर ने अपनी बेटी की शादी के लिए बचाए 500 रुपये की चिंता जताई और व्यापारी से सलाह मांगी।
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व्यापारी ने सुझाव दिया कि मजदूर अपने धन की पोटली को गड्ढे में छुपा दे। मजदूर ने ऐसा ही किया।
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डाकू मजदूर के घर में घुस आए और सारा धन देने को कहा। व्यापारी ने चालाकी से डाकुओं को पोटली का स्थान बताया, जिससे उनका ध्यान उस ओर आकर्षित हुआ।
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डाकुओं ने मजदूर की पोटली ले ली और चले गए। मजदूर ने सोचा कि व्यापारी डाकुओं का साथी है, परंतु व्यापारी ने डाकुओं के साथ नहीं गया।
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व्यापारी ने समझाया कि उसने ऐसा करके अपने धन को भी बचाया क्योंकि डाकुओं की तलाशी में उसकी पोटली भी मिल सकती थी।
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व्यापारी ने मजदूर को 600 रुपये दिए, जिसमें 500 उसकी बेटी की शादी के लिए और 101 उसकी ओर से उपहार स्वरूप थे।
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कहानी की सीख यह है कि कठिन समय में भी होशियारी से काम लिया जाए तो इंसान न केवल खुद को बल्कि दूसरों को भी मुश्किल से निकाल सकता है।
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