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नन्हा नंदू एक अच्छा चित्रकार था, जिसे पढ़ना और लिखना नहीं आता था, लेकिन उसने चित्र बनाना सीख लिया था। वह अपनी फरमाइशें चित्रों के माध्यम से मम्मी-पापा को देता था।
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नंदू के चौथे जन्मदिन पर पापा ने उसे रंगों की डिब्बी और ब्रश गिफ्ट किए, जिससे वह और अधिक उत्साहित होकर चित्र बनाने लगा।
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नंदू ने घर की दीवारों पर चित्र बनाना शुरू कर दिया, जिससे उसकी मम्मी को गुस्सा आया। उन्होंने उसे समझाया कि चित्र बनाने के लिए पेंटिंग शीट्स का इस्तेमाल करे।
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नंदू को मम्मी की बातें अच्छी नहीं लगीं, लेकिन उसने खेलने के लिए नए तरीकों की खोज की। उसने घर के बाहरी गेट पर रंग-बिरंगे चाक से चित्र बनाए।
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नंदू की दीवारों पर चित्र बनाने की आदत स्कूल तक पहुँच गई, जहाँ उसके दोस्त बीनू ने उसे समझाने की कोशिश की।
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नंदू की गंदी आदत छुड़ाने के लिए बीनू ने एक योजना बनाई। उसने नंदू की पीठ पर उल्लू की पेंटिंग चिपका दी, जिसे देखकर सभी हंसने लगे।
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बीनू ने नंदू को समझाया कि हर चीज अपनी जगह पर सुंदर लगती है। इससे नंदू को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने दीवारों पर चित्र बनाना छोड़ दिया।
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नंदू की इस समझदारी से मम्मी-पापा और स्कूल की मैडम खुश हुए।
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बीनू भी खुश था कि उसके प्रयास से नंदू की गंदी आदत छूट गई।
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