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स्वामी विवेकानन्द अपने बाल्यकाल में सत्य की खोज में नगर-नगर घूमते हुए काशी पहुँचे और एक दिन मंदिरों में घूमते हुए नगर से दूर निकल गए।
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वहाँ एक निर्जन स्थान पर विवेकानन्द को बंदरों का सामना करना पड़ा, जो उन्हें देखकर आक्रामक हो गए और उनके चारों ओर इकट्ठे हो गए।
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विवेकानन्द डरकर भागने लगे, जिससे बंदर भी उनका पीछा करने लगे और स्थिति भयावह हो गई।
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तभी एक वृद्ध व्यक्ति ने विवेकानन्द को "भागो मत, मुकाबला करो" कहकर प्रोत्साहित किया, जिससे विवेकानन्द में साहस आया।
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विवेकानन्द ने बंदरों की तरफ दौड़कर उनका सामना किया, जिससे बंदर डरकर पेड़ों पर चढ़ गए।
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वृद्ध व्यक्ति ने विवेकानन्द को समझाया कि भागने की बजाय साहस और मनोबल से मुकाबला करना चाहिए।
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इस घटना से विवेकानन्द ने सीखा कि मुश्किल परिस्थितियों से भागने की बजाय उनका सामना करना ही सही समाधान है।
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कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए मनोबल और साहस महत्वपूर्ण होते हैं।
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यह कहानी बच्चों को यह सिखाती है कि किसी भी कठिनाई का सामना दृढ़ता और आत्मविश्वास के साथ करना चाहिए।
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कहानी का संदेश है कि समस्याओं से भागने की बजाय उनका सामना करने से ही समाधान मिलता है।
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