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एक धनी व्यक्ति का बटुआ बाजार में गिर गया, जिसमें कई हजार रुपये और जरूरी कागजात थे। उसने भगवान से प्रार्थना की कि बटुआ मिल जाए तो वह प्रसाद चढ़ाएगा और गरीबों को भोजन कराएगा।
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बटुआ एक बेरोजगार युवक को मिला, जिसने बटुए पर मालिक का नाम पढ़कर उसे वापस कर दिया। सेठ ने युवक को सौ रुपये इनाम देने की कोशिश की, लेकिन युवक ने मना कर दिया।
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सेठ ने युवक को अगले दिन भोजन के लिए घर बुलाया, लेकिन वह मंदिर में किए अपने वादे को भूल गया। सेठ ने अपनी पत्नी से युवक की मूर्खता की बात की, लेकिन पत्नी ने युवक की ईमानदारी की सराहना की।
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सेठ की पत्नी ने सुझाव दिया कि युवक को काम पर रखना चाहिए क्योंकि उसके पास ईमानदारी की पूंजी है। सेठ ने युवक को खोजने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं मिला।
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बाद में, सेठ को पता चला कि युवक किसी और सेठ के यहां काम कर रहा है। उस सेठ ने युवक की ईमानदारी की तारीफ की और उसे अपने यहां मुनीम रख लिया।
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सेठ ने महसूस किया कि उसने निर्णय लेने में देरी की और एक ईमानदार व्यक्ति को खो दिया। युवक ने ईमानदारी का पुरस्कार पाया और उसे एक नई नौकरी मिल गई।
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कहानी यह सिखाती है कि विकल्पों पर विचार करना गलत नहीं है, लेकिन निर्णय लेने में देरी करने से अवसर हाथ से निकल सकते हैं।
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सही समय पर सही निर्णय लेने से सफलता मिलती है, जैसा कि दूसरे सेठ ने किया,
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और उसे एक योग्य और ईमानदार कर्मचारी मिला।
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