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एक राजा अपने महल में ब्राह्मणों को भोजन करा रहा था, जब एक चील एक जिंदा साँप को लेकर महल के ऊपर से गुजरी।
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चील के पंजों में दबे साँप ने आत्म-रक्षा में ज़हर निकाला, जो रसोइये द्वारा पकाए जा रहे भोजन में गिर गया, जिससे सब ब्राह्मणों की मृत्यु हो गई।
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राजा को ब्राह्मणों की मृत्यु से गहरा दुख हुआ, लेकिन यह स्पष्ट नहीं था कि इस पाप का दोष किसके खाते में जाएगा - राजा, रसोइया, चील, या साँप।
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यमराज के लिए यह तय करना कठिन हो गया कि पाप का फल किसे भुगतना होगा।
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कुछ समय बाद एक महिला ने ब्राह्मणों को राजा के बारे में बुरा बोलते हुए महल का रास्ता बताया।
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यमराज ने फैसला किया कि पाप का फल उस महिला को भुगतना होगा क्योंकि उसने राजा के बारे में बुराई करते हुए आनंद लिया।
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कहानी का नैतिक यह है कि जब हम किसी की बुराई करते हैं, तो उनके पाप हमारे खाते में भी आ जाते हैं।
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यह कहानी हमें सिखाती है कि दूसरों की बुराई करने से बचना चाहिए,
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क्योंकि यह हमारे जीवन में अनचाहे कष्ट ला सकता है।
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