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संदीप सक्सेना आठवीं कक्षा का छात्र था और उसके दोस्त बहुत कम थे। उसका सबसे अच्छा दोस्त जितेन्द्र था, जो एक दिन स्कूल नहीं आया, जिससे संदीप चिंतित हो गया।
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एक अनजान नवयुवक ने संदीप को बताया कि जितेन्द्र का एक्सीडेंट हो गया है और उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया है। संदीप बिना सोचे-समझे उसके साथ चला गया।
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नवयुवक और उसके साथी संदीप का अपहरण कर लेते हैं और उसे कार में डालकर ले जाते हैं। वे फिरौती के लिए संदीप के परिवार से 50 लाख रुपये मांगने की योजना बनाते हैं।
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संदीप को एक कमरे में बंद कर दिया जाता है, जहां एक आदमी उसकी निगरानी करता है। संदीप अपनी बुद्धिमानी से पता लगा लेता है कि वह मेरठ में ही है।
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संदीप ने अपहरणकर्ताओं में फूट डालने की योजना बनाई और बिरजू नाम के व्यक्ति को लालच देकर भागने का रास्ता सुझाया।
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संदीप ने बिरजू से कहा कि वह अपने पापा से 20 लाख रुपये दिलवा देगा, जिससे बिरजू लालच में आ गया।
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संदीप ने चालाकी से बिरजू की सब्जी में बेहोशी की दवा मिलाई और अपनी सब्जी से बदल दी, जिससे बिरजू बेहोश हो गया।
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संदीप ने मौके का फायदा उठाकर वहां से भाग निकला और अपने पापा को सारी बात बताई। पुलिस की मदद से अपहरणकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
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संदीप की सूझ-बूझ और चालाकी की वजह से वह अपहरणकर्ताओं के चंगुल से बच निकला और उन्हें गिरफ्तार करवाने में सफल रहा। पुलिस ने उसकी प्रशंसा की।
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