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अवध के नवाब आसफुद्दौला अपनी दानशीलता के लिए प्रसिद्ध थे और उनके दरवाजे से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता था।
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लखनऊ के दो फकीर भीख मांगते थे और उनके गाने में मौला से मदद की प्रार्थना होती थी, लेकिन उनकी हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा था।
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एक फकीर ने सोचा कि मौला की बजाय नवाब आसफुद्दौला से मदद मांगी जाए, और उसने नवाब के सामने एक तुकबंदी प्रस्तुत की।
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नवाब ने फकीर को दो खरबूजे दिए, जिसे देखकर फकीर निराश हुआ लेकिन उसने उन्हें स्वीकार कर लिया।
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फकीर ने वो खरबूजे एक सुलफा की दुकान पर दे दिए, जहां से वह दूसरा फकीर उन्हें ले गया।
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दूसरे फकीर ने देखा कि खरबूजे बारीक धागों से सिले हुए थे और उनमें से हीरे-जवाहरात निकले।
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फकीर ने उन हीरे-जवाहरात को बेचकर एक समृद्ध जीवन शुरू किया, जबकि पहले फकीर को कुछ नहीं मिला।
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नवाब को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने महसूस किया कि असली देने वाला खुदा है,
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और उन्हें अपनी दानशीलता पर घमंड नहीं करना चाहिए।
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