Read Full Story
सम्राट वीरभद्र की दानशीलता की कहानियाँ बहुत प्रसिद्ध थीं, लेकिन दान देते समय वे पात्र और कुपात्र में भेद नहीं करते थे, जिससे राजकोष खाली होता गया।
Read Full Story
राजकोष की कमी को पूरा करने के लिए प्रजा पर नए कर लगाए गए, जिससे जनता में असंतोष फैल गया और पड़ोसी राजा ने इस स्थिति का लाभ उठाकर राज्य पर आक्रमण कर दिया।
Read Full Story
वीरभद्र और उनकी रानी को बंदी बना लिया गया, लेकिन वे किसी तरह भाग निकले और जंगलों में भटकने लगे।
Read Full Story
भूख से परेशान होकर रानी ने सुझाव दिया कि वे सेमरगढ़ जाकर अपने दान पुण्य का एक अंश बेच दें, जिससे उन्हें भोजन मिल सके।
Read Full Story
सेमरगढ़ पहुंचने पर, सेठ ने उनके पुण्य को तराजू में रखने को कहा, लेकिन तराजू हिला नहीं, जिससे पता चला कि उनका दान अनीति से अर्जित धन का था।
Read Full Story
वीरभद्र ने भिखारी को दी गई रोटी के पुण्य को याद किया और जब उसे तराजू में रखा, तो पलड़ा झुक गया, यह दर्शाता है कि सच्चा दान वही है जो ईमानदारी से कमाए धन से किया गया हो।
Read Full Story
इस अनुभव से राजा वीरभद्र को एहसास हुआ कि सच्चा और सार्थक दान वही है जो ईमानदारी से अर्जित धन से दिया जाए।
Read Full Story
कहानी का मुख्य संदेश यह है कि दान का वास्तविक मूल्य तभी होता है जब वह सही तरीके से अर्जित धन से किया जाए,
Read Full Story
अन्यथा उसका कोई महत्व नहीं होता।
Read Full Story