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स्वर्ण नगरी के राजा नरपत सिंह एक सहनशील और न्यायप्रिय राजा थे, जो हमेशा अपनी जनता के कल्याण के बारे में सोचते थे।
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राजा के दो जुड़वा बेटे थे, सूरज सिंह और चन्द्र सिंह, जिनमें से किसी एक को उत्तराधिकारी चुनना राजा के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य था।
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राजा ने एक युक्ति अपनाई और दोनों बेटों से पूछा कि यदि वे राजा बनें, तो वे क्या करेंगे।
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सूरज सिंह ने कहा कि वह राज्य की शोभा बढ़ाएगा और खजाने को और समृद्ध करेगा।
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चन्द्र सिंह ने उत्तर दिया कि वह राज्य में शांति, न्याय और भाईचारे की व्यवस्था बनाएगा ताकि जनता सुखी और सुरक्षित रहे।
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राजा नरपत सिंह ने चन्द्र सिंह के उत्तर से प्रभावित होकर उसे अगला राजा घोषित किया, क्योंकि उसने जनता के हित को प्राथमिकता दी।
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सूरज सिंह को पचास ऊंटों पर जितना धन और सामान ले जा सकता था, ले जाने की अनुमति दी गई।
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राजा नरपत सिंह के निधन के बाद, चन्द्र सिंह राजा बना और उसने अपने पिता की तरह राज्य में लोकप्रियता हासिल की।
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चन्द्र सिंह के नेतृत्व में राज्य में खुशहाली बढ़ी और जनता संतुष्ट रहने लगी।
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यह कहानी हमें सिखाती है कि एक सच्चा नेता वही होता है जो निजी स्वार्थ को त्यागकर जनता और राष्ट्र के हित में कार्य करता है।
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