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एक राजा ने अपने राज्य से बहुत सी दौलत इकट्ठा करके उसे जंगल में एक गुप्त तहखाने में छुपा दिया था, जिसकी चाबियां केवल उसके पास और एक खास मंत्री के पास थीं।
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एक दिन राजा अकेले ही अपने खजाने को देखने गया और तहखाने का दरवाजा खुला छोड़ दिया। मंत्री ने गलती से दरवाजा बाहर से बंद कर दिया, यह सोचकर कि उसने पहले दरवाजा खुला छोड़ दिया था।
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राजा अंदर फंस गया और बाहर निकलने की कोशिश की, लेकिन उसकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं था। भूख और प्यास से परेशान होकर उसने खजाने से मदद मांगी, पर कोई फायदा नहीं हुआ।
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राजा ने महसूस किया कि उसकी सारी दौलत उसे एक गिलास पानी या एक वक्त का खाना नहीं दे सकती। वह भूख के कारण बेहोश होकर गिर पड़ा।
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जब उसे होश आया, तो उसने खून से दीवार पर लिखा कि उसकी सारी दौलत बेकार है क्योंकि यह उसकी मूलभूत जरूरतों को पूरा नहीं कर सकती।
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मंत्री और सेना राजा को खोजते रहे, लेकिन जब मंत्री ने तहखाने का दरवाजा खोला, तो उसने देखा कि राजा की मृत्यु हो चुकी थी और दीवार पर लिखा संदेश पढ़ा।
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राजा का यह संदेश था कि दौलत जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकती और इसलिए यह बेकार है।
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यह कहानी इस नैतिकता की ओर इशारा करती है कि जीवन में दौलत से ज्यादा महत्वपूर्ण चीजें होती हैं,
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जैसे पानी और भोजन, जो जीवन के लिए अनिवार्य हैं।
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