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यह कहानी अर्जुन वाजपेयी की है, जो उत्तर प्रदेश के नोएडा से हैं और बचपन से ही माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का सपना देखते थे।
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बचपन में किताबों में माउंट एवरेस्ट की कहानियाँ पढ़ते हुए, उन्होंने खुद इस चोटी को छूने का लक्ष्य बनाया।
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आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद, अर्जुन ने हार नहीं मानी और अपने सपने की ओर बढ़ते रहे।
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उन्होंने स्पॉन्सरशिप के लिए आवेदन किया और पर्वतारोहण का प्रशिक्षण प्राप्त किया।
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सिर्फ 16 साल की उम्र में, अर्जुन ने 2010 में माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई शुरू की।
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ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी और कठिन मौसम के बावजूद, उन्होंने अपने सपने को पूरा करने का साहस नहीं छोड़ा।
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अंततः, वह माउंट एवरेस्ट फतह करने वाले सबसे कम उम्र के भारतीयों में से एक बन गए।
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अर्जुन की कहानी हमें सिखाती है कि आत्मविश्वास और लक्ष्य के प्रति समर्पण से कोई भी सपना असंभव नहीं होता।
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उनकी सफलता से बच्चों को प्रेरणा मिलती है कि जीवन में कभी हार नहीं माननी चाहिए और अपने सपनों के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।
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