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चाणक्य एक महान राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री थे जिन्होंने नंद वंश के अपमान के बाद उसकी समाप्ति की प्रतिज्ञा की थी और चंद्रगुप्त को मगध का सम्राट बना दिया।
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एक बुढ़िया की सलाह से चाणक्य को एहसास हुआ कि राज्य की सीमाओं को सुरक्षित करना आवश्यक है। इस पर उन्होंने ध्यान दिया और तैयारी शुरू की।
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सिकंदर भारत की ओर तेजी से बढ़ रहा था, जिससे चाणक्य चिंतित थे। उन्होंने सिकंदर और उसके गुरु अरस्तू के संबंधों का अध्ययन किया।
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चाणक्य ने समझा कि सिकंदर के सैनिक उसे देवता का बेटा मानते थे, जिससे उनका मनोबल ऊंचा था।
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चाणक्य ने चंद्रगुप्त को सलाह दी कि सिकंदर के सैनिकों के सामने उसका अपमान किया जाए ताकि उनका विश्वास डगमगाए।
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चंद्रगुप्त ने सिकंदर को द्वंद युद्ध के लिए चुनौती दी, जिससे सैनिक हैरान रह गए
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और उनका विश्वास टूटने लगा।
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इस घटना के बाद सिकंदर के सैनिकों का मनोबल गिर गया और वे लौटने की मांग करने लगे।
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चाणक्य ने अपनी इस रणनीति की सफलता पर गर्व महसूस किया और अरस्तू की हार हुई।
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