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एक गाँव में एक धनी सेठ के बंगले के पास एक गरीब मोची की दुकान थी, जो जूते सिलते समय भगवान के भजन गुनगुनाता था।
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सेठ विदेश से लौटते समय बीमार हो गया और बड़े डॉक्टर भी उसकी बीमारी का इलाज नहीं कर सके।
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एक दिन सेठ को मोची के भजन सुनाई दिए, जो उसे बहुत पसंद आए और उसे मानसिक शांति देने लगे।
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मोची के भजनों से सेठ की तबीयत में सुधार हुआ और उसने मोची को दस लाख रुपये इनाम में दिए।
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मोची इनाम पाकर खुश तो हुआ, लेकिन पैसों की चिंता में इतना उलझ गया कि वह ठीक से सो नहीं पाया और उसका काम प्रभावित होने लगा।
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पैसों के लालच में मोची अपने भजन गाना भूल गया और उसकी दुकानदारी भी धीरे-धीरे बंद होने लगी।
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सेठ की तबीयत फिर से खराब होने लगी, और मोची ने महसूस किया कि धन ने उसे परमात्मा से दूर कर दिया है।
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मोची ने सेठ को रुपये वापस कर दिए और फिर से अपने काम और भजन में लग गया।
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इस कहानी से यह सीख मिलती है कि पैसों का लालच हमें अपनों और हमारी असली खुशियों से दूर कर देता है।
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धन जीवन के लिए जरूरी है, लेकिन उसे अपनी आध्यात्मिकता और संबंधों से ऊपर रखना मूर्खता है। हमें अपने कर्तव्यों और मूल्यों को नहीं भूलना चाहिए।
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