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दुर्जन सिंह एक वीर और साहसी सेनापति थे, जो हाथ में भाला और धनुष बाण लेकर युद्ध क्षेत्र में शत्रुओं को पराजित करने के लिए कूद पड़ते थे।
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उनकी वीरता पर उनकी प्रजा और राजा दोनों गर्व करते थे। एक दिन राजा ने उन्हें किसी विषय पर सलाह लेने के लिए बुलाया।
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दुर्जन सिंह जल्दी-जल्दी तैयार होकर दाढ़ी बनवाने बैठे, लेकिन उनका नाई बातूनी था और गलती से उस्तरा गलत चला गया जिससे उनकी कनपटी से खून बहने लगा।
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खून देखकर दुर्जन सिंह गुस्से में आग बबूला हो उठे और नाई को मूर्ख कहकर डाँटा।
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नाई ने आश्चर्य से पूछा कि युद्ध में तो वह सैकड़ों घाव सह लेते हैं, लेकिन इस छोटे से घाव पर इतना घबरा गए।
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दुर्जन सिंह ने क्रोधित होकर भाला उठाया और नाई के पैर पर चोट कर दी, जिससे खून बहने लगा।
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उन्होंने नाई को समझाया कि उस्तरे से लगा एक छोटा घाव भी युद्ध क्षेत्र में लगे सैकड़ों घाव से ज्यादा दर्दनाक हो सकता है, क्योंकि युद्ध में वह अपने देश और जनता को याद रखते हैं।
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नाई ने समझकर दुर्जन सिंह से माफी मांगी और उनका क्रोध शांत हो गया।
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कहानी यह संदेश देती है कि परिस्थिति के अनुसार घावों की तीव्रता और महत्व अलग हो सकता है।
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