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एक दिन ट्रेन में सफर के दौरान किशोरों का एक समूह डिब्बे में चढ़ा, जिससे माहौल हंसी और खुशी से भर गया। लेकिन अचानक सब चुप हो गए जब उन्हें एक संदिग्ध पार्सल नजर आया।
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किशोरों ने तुरंत अपने मोबाइल से अगले स्टेशन पर सूचना दी, जिससे स्टेशन पर गाड़ी के रुकते ही एक कांस्टेबल और स्टेशन मास्टर ने पार्सल को सुरक्षित उठा लिया।
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पार्सल के सुरक्षित हटाए जाने पर सभी ने राहत की सांस ली, लेकिन इसके बाद सफर का माहौल गंभीर बना रहा।
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लेखक ने एक पुराने स्टेशन की यात्रा का जिक्र किया, जहां बचपन में पुल पार करते समय उन्हें भाप इंजन से डर लगता था।
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बचपन की स्मृति में लेखक को याद आया कि उनके पिता उन्हें पुल पार कराते समय अपनी बाहों में उठा लेते थे, जिससे उनका डर खत्म हो जाता था।
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लेखक के पिता का यह कहना कि "घबराओ नहीं, मेरे होते तुम्हें कुछ नहीं होगा" उन्हें सुरक्षा का अहसास दिलाता था।
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इस कहानी के माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि
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जैसे पिता अपने बच्चे को सुरक्षा का अहसास कराते हैं, वैसे ही ईश्वर भी हमें आश्वस्त करते हैं कि घबराने की कोई बात नहीं है।
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कहानी का मुख्य संदेश है कि ईश्वर पर विश्वास रखें, क्योंकि वे हमेशा हमारे साथ हैं और हमें कभी अकेला नहीं छोड़ते।
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