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इस प्रेरणादायक कहानी में ईश्वर चन्द्र विद्या सागर की शिष्टाचार का महत्त्व समझाने की कोशिश की गई है। विद्या सागर जी संस्कृत कॉलेज के प्रधानाचार्य थे और अपने स्वाभिमान पर गर्व करते थे।
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एक दिन विद्या सागर जी, प्रेसीडेंसी कॉलेज के प्रिंसिपल मिस्टर कैट से मिलने गए। वहां उन्होंने देखा कि मिस्टर कैट टेबल पर पैर फैलाकर बैठे थे और उन्होंने विद्या सागर जी को बैठने के लिए भी नहीं कहा।
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विद्या सागर जी को मिस्टर कैट का यह व्यवहार बहुत अजीब लगा और उन्होंने इसे भारतीय नागरिकों और उनकी सांस्कृतिक परंपराओं का अपमान माना।
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कुछ दिनों बाद, मिस्टर कैट को विद्या सागर जी की सलाह की आवश्यकता पड़ी और वे विद्या सागर जी से मिलने उनके कॉलेज गए।
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विद्या सागर जी ने मिस्टर कैट के व्यवहार का उसी तरीके से जवाब दिया और उन्हें बैठने के लिए नहीं कहा। इस व्यवहार से मिस्टर कैट नाराज़ हो गए।
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मिस्टर कैट ने विद्या सागर जी के खिलाफ शिक्षा परिषद के सचिव को शिकायत की, लेकिन सचिव विद्या सागर जी को जानते थे और उन्होंने स्थिति को समझा।
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विद्या सागर जी ने सचिव से कहा कि उन्होंने यूरोपीय शिष्टाचार का अनुसरण किया क्योंकि उन्हें लगा कि यही तरीका है।
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इस घटना से मिस्टर कैट ने भारतीय नागरिकों के स्वाभिमान को समझा
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और भविष्य में इस तरह के व्यवहार से बचने का निर्णय लिया।
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