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कुछ महीने पहले, एक व्यक्ति ने शिकायत की कि उसके पास प्रार्थना के लिए समय नहीं है क्योंकि उसका अधिकांश समय काम और यात्रा में बीत जाता है।
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एक मित्र ने उसे सलाह दी कि वह कार में यात्रा करते समय भगवान से बात कर सकता है, जैसे कि भगवान उसके साथ वाली सीट पर बैठे हों।
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इस तरह की प्रार्थना से व्यक्ति अपने सुख-दुःख भगवान को बता सकता है और उनसे मार्गदर्शन की प्रार्थना कर सकता है।
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एक अन्य कहानी में, एक बीमार वृद्ध व्यक्ति अपनी बेटी के आग्रह पर पंडित से मिलने जाता है और उसके पास एक खाली कुर्सी रखता है।
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वृद्ध व्यक्ति ने पंडित को बताया कि वह कुर्सी भगवान के लिए रखता है और उनसे बातचीत करता है, जिससे उसे शांति और सहारा मिलता है।
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पंडित इस विचार से प्रेरित हुआ और बीमार व्यक्ति को इस प्रथा को जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया।
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दो दिन बाद वृद्ध व्यक्ति की मृत्यु हो गई, और उसकी बेटी ने देखा कि उसका सिर उस कुर्सी पर टिका हुआ था।
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इस घटना से पंडित की आंखों में आंसू आ गए और उसने कहा कि काश, हर कोई भगवान की गोद में सिर टिका पाता।
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यह कहानी इस बात को रेखांकित करती है कि भगवान के साथ संवाद और प्रार्थना करने के लिए किसी विशेष समय या स्थान की आवश्यकता नहीं है।
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यह कहानी हमें प्रेरणा देती है कि हम किसी भी परिस्थिति में भगवान को अपने साथ महसूस कर सकते हैं और उनसे बात कर सकते हैं।
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