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रत्नपुर राज्य के राजा रामसिंह अपनी रानी रूपवती के प्रति अत्यधिक प्रेम रखते थे और राज्य के गंभीर मामलों में भी उनकी सलाह को प्रमुख मानते थे।
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एक दिन रानी का कीमती हार गुम हो गया, जिससे पूरे राज्य में खलबली मच गई और पुलिस बल चोर की तलाश में जुट गया।
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राज्य में घोषणा की गई कि हार लौटाने वाले को इनाम मिलेगा, लेकिन तीन दिनों के बाद पकड़े जाने पर अपराधी को मौत की सजा दी जाएगी।
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एक साधु ने अपनी यात्रा के दौरान सुनसान रास्ते पर हार पाया और उसे अपने कमण्डल में रख लिया।
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साधु ने चौथे दिन राजदरबार में हार लौटाया, जबकि वह इसे पहले दिन भी लौटा सकता था।
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साधु ने बताया कि वह इसे पहले दिन लौटाता तो लोग समझते कि उसने रानी के डर से ऐसा किया, लेकिन उसने भगवान के डर से चौथे दिन लौटाया।
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साधु के इस निर्भय उत्तर ने राजदरबार को चौंका दिया,
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और राजा-रानी उसके आदर सत्कार से पहले ही साधु अपने रास्ते चला गया।
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यह कहानी सिखाती है कि सच्चाई और ईमानदारी का महत्व भगवान के प्रति श्रद्धा में है, न कि किसी व्यक्ति के भय में।
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