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यह कहानी श्यामदास नामक ब्राह्मण की है, जिसने अपनी बेटी की शादी के लिए व्यापारी हरिलाल के पास 600 रुपये जमा किए थे। जब पैसे वापस मांगने का समय आया, तो हरिलाल ने पैसे लौटाने से मना कर दिया।
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श्यामदास के पास कोई लिखित सबूत नहीं था, जिससे वह परेशान हो गया। वह राजा विश्वनाथ से मदद मांगने के लिए दरबार में पहुंचा।
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राजा विश्वनाथ ने श्यामदास की समस्या सुनी और एक चतुर योजना बनाई। उन्होंने श्यामदास को अपनी सवारी के दौरान हरिलाल की दुकान के पास खड़ा रहने को कहा।
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राजा ने श्यामदास को अपनी बग्घी में बैठाकर उसे अपना गुरु कहकर सम्मान दिया। हरिलाल यह देख कर डर गया कि श्यामदास राजा का खास आदमी है।
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हरिलाल ने अपनी गलती मान ली और श्यामदास को उसके 600 रुपये ब्याज समेत लौटा दिए। इसके साथ ही उसने 2,000 रुपये और भी दिए।
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श्यामदास ने खुशी-खुशी पैसे लेकर राधा की शादी बड़े धूमधाम से की।
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इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि सच्चाई और अच्छाई हमेशा जीतती है। श्यामदास ने हिम्मत नहीं हारी और राजा से मदद मांगी।
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राजा ने अपनी बुद्धिमत्ता से हरिलाल को डराकर श्यामदास का हक दिलवाया। कहानी सिखाती है
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कि मुश्किल समय में सच्चाई का साथ देना चाहिए और परमात्मा पर विश्वास रखना चाहिए।
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