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चित्रानगरी के राजा के पास अपार धन-दौलत थी, लेकिन उनके जीवन में एक कमी थी - एक पुत्र की।
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एक दिन एक फकीर राजा के दरवाजे पर आया और उसे देखकर राजा ने अपनी उदासी का कारण बताया।
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फकीर ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि नौ महीने बाद राजा का महल किलकारियों से गूंजेगा, और ठीक नौ महीने बाद रानी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया।
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राजकुमार को शिक्षा के लिए गुरू के आश्रम में भेजा गया, जहाँ उसने दस वर्षों में बुद्धिमत्ता हासिल की।
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गुरू ने राजकुमार को विदाई के समय बिना कारण प्रहार किया, जिससे राजकुमार के मन में नफरत भर गई।
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राजकुमार के राजा बनने के बाद उसने गुरू को महल में बुलाकर प्रहार का कारण पूछा।
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गुरू ने समझाया कि निर्दोष को दिया गया दंड हमेशा याद रहता है, और यह अंतिम शिक्षा थी कि कभी निर्दोष को दंड न दें।
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राजा ने गुरू की शिक्षा को समझा और प्रण किया कि वह कभी किसी निर्दोष को दंड नहीं देगा,
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और गुरू की महानता को स्वीकार किया।
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