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यह कहानी विख्यात दार्शनिक एरिक हाॅफर की है, जो बचपन से ही मेहनती और स्वाभिमानी थे। कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने मेहनत का दामन नहीं छोड़ा।
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हाॅफर की आर्थिक स्थिति एक समय बहुत खराब हो गई। कई दिनों तक भूखे रहने के बाद भी उन्होंने अपनी स्वाभिमान नहीं खोया और निशुल्क भोजन नहीं करने का निर्णय लिया।
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भूख से व्याकुल हाॅफर ने एक होटल में जाकर भोजन के बदले काम करने की पेशकश की। होटल मालिक उनके लेखन से प्रभावित था और उनकी शर्त मान गया।
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हाॅफर ने बिना किसी झिझक के होटल में वेटरों की तरह काम किया और अपनी ईमानदारी और उत्साह से सबका दिल जीत लिया।
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इस घटना ने साबित किया कि मेहनत और स्वाभिमान से बड़ी कोई दौलत नहीं होती। हाॅफर ने अपनी मेहनत और स्वाभिमान के बल पर अपनी अलग पहचान बनाई।
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कहानी हमें सिखाती है कि हमें कभी भी परिस्थितियों के आगे झुकना नहीं चाहिए। मेहनत और स्वाभिमान से किए गए काम से आत्म-सम्मान और दूसरों का आदर मिलता है।
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हाॅफर की कहानी से यह भी सीख मिलती है कि मेहनत का फल मीठा होता है
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और जीवन में सच्ची पहचान हासिल करने के लिए मेहनत जरूरी है।
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इस प्रेरणादायक कहानी से यह संदेश मिलता है कि कठिनाइयों में भी स्वाभिमान और मेहनत को प्राथमिकता देनी चाहिए।
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