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कहानी "बूढ़े गंगाराम की खुशी की खोज" में गंगाराम नाम का एक बूढ़ा व्यक्ति हमेशा उदास रहता है और शिकायत करता है, जिसके कारण गाँव वाले उससे दूर रहते थे।
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गंगाराम को 80 साल की उम्र में अहसास होता है कि बाहर खुशी की तलाश बेकार है, और वह खुशी की चाह छोड़कर ज़िंदगी का आनंद लेना शुरू करता है।
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अचानक गंगाराम का मूड बदल जाता है और वह खुश रहने लगता है, जिससे गाँव के लोग हैरान हो जाते हैं।
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गंगाराम ने बताया कि खुशी बाहर नहीं, बल्कि अपने मन में होती है। उसने अपनी ज़िंदगी का मज़ा लेना शुरू किया और सच में खुश हो गया।
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गंगाराम की खुशी ने पूरे गाँव का माहौल बदल दिया और वह गाँव का सबसे प्यारा इंसान बन गया।
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वह बच्चों को कहानियाँ सुनाने और बड़ों से हँसी-मज़ाक करने लगा, जिससे सभी के चेहरों पर मुस्कान आ गई।
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कहानी से यह सीख मिलती है कि खुशी की तलाश में भागने की बजाय
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हमें अपनी ज़िंदगी का आनंद लेना चाहिए और मन की शांति में असली खुशी होती है।
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हमें जो कुछ हमारे पास है, उसमें संतुष्ट रहना चाहिए और छोटी-छोटी बातों में खुशियाँ ढूँढनी चाहिए।
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