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यह कहानी बनारस के एक धनवान सेठ की है, जो विष्णु भगवान के परम भक्त थे और सदैव सत्य बोलते थे।
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एक दिन भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी सेठ की प्रशंसा कर रहे थे, तब लक्ष्मी ने उनकी परीक्षा लेने का प्रस्ताव रखा।
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सेठ को स्वप्न में लक्ष्मी देवी ने दर्शन दिए और कहा कि वे उनके घर से जा रही हैं। सेठ ने उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की और कहा कि वे अपनी मर्जी से जा सकती हैं।
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इसके बाद यश और धर्म ने भी सेठ से विदा ली, लेकिन सेठ ने किसी को रोकने का प्रयास नहीं किया।
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जब सत्य ने जाने की बात कही, तब सेठ ने सत्य के पैर पकड़ लिए और कहा कि वे सत्य के बिना नहीं रह सकते।
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सेठ की सत्य के प्रति अटूट भक्ति को देखकर सत्य ने कहा कि वे कभी भी सेठ का साथ नहीं छोड़ेंगे।
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सत्य के रहने से धर्म, यश और लक्ष्मी भी वापस लौट आए और सेठ के साथ रहने का निर्णय लिया।
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कहानी के अंत में सेठ की नींद खुली और उन्होंने समझा कि यह एक परीक्षा थी जिसमें वे सफल रहे।
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कहानी इस बात पर जोर देती है कि जहाँ सत्य का निवास होता है, वहाँ यश, धर्म और लक्ष्मी स्वतः ही आ जाते हैं।
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यह प्रेरणादायक कहानी हमें सिखाती है कि सत्य के साथ रहने से ही सच्ची समृद्धि और प्रसिद्धि प्राप्त होती है।
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