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मुंबई के एक छोटे से अपार्टमेंट में रहने वाला 12 साल का मोंटी, अपनी साइकिल रेस की टीम बनाने का सपना देखता था।
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मोंटी के पास उसके पापा द्वारा गिफ्ट की गई एक चमचमाती लाल साइकिल थी, जिससे वह अपने दोस्तों चिंटू और मिंकी के साथ पार्क में साइकिल चलाने जाता था।
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पार्क में एक साइकिल रेस का आयोजन हुआ, जहाँ विजेता को नई साइकिल मिलने वाली थी। मोंटी डर के कारण भाग लेने से हिचकिचा रहा था।
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रेस के दिन मोंटी की साइकिल का टायर पंचर हो गया, लेकिन उसके दोस्तों की मदद से टायर ठीक किया गया।
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रेस के दौरान मोंटी की साइकिल का हैंडल टेढ़ा हो गया, लेकिन उसने रमेश चाचा की बात याद करके हिम्मत नहीं हारी और रेस में हिस्सा लिया।
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मोंटी ने अपनी हिम्मत के बल पर रेस जीत ली, जिससे सभी बच्चे हैरान रह गए और उसकी तारीफ करने लगे।
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रेस जीतने के बाद मोंटी को नई साइकिल मिली, और उसने अपनी पुरानी साइकिल रमेश चाचा को गिफ्ट कर दी, जिनकी सलाह ने उसे प्रेरित किया था।
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इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि असली जीत कोशिश करने में होती है, न कि डरने में।
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हिम्मत से डर को हराया जा सकता है।
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