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यह कहानी मुर्गे और कौवे की है, जो ब्रह्माजी के धरती भ्रमण के दौरान सोते रहते हैं, जबकि पूरा जंगल उनका स्वागत करने में लगा होता है।
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ब्रह्माजी दोनों की अनुपस्थिति से नाराज होकर उन्हें सजा देते हैं, जिसमें मुर्गे को हर सुबह 4 बजे कुकड़ू-कूं करके सबको जगाना होता है।
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कौवे को सजा मिलती है कि वह मेहमानों के आने की खबर देने के लिए कांव-कांव करे, ताकि लोग तैयार हो सकें।
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कहानी के अनुसार, आज भी मुर्गा और कौवा अपनी सजा को निभा रहे हैं, जिससे बच्चों को मजेदार गीत गाने का मौका मिलता है।
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यह कहानी बच्चों को हंसते-हंसते सीख देती है कि कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए और बड़ों का सम्मान करना चाहिए।
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कहानी बताती है कि गलतियों पर मिलने वाली सजा भी कभी-कभी मजेदार काम बन जाती है।
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इस कहानी का उद्देश्य मनोरंजन के साथ-साथ नैतिक शिक्षा देना है, जो बच्चों के लिए प्रेरणादायक है।
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कहानी के अंत में यह संदेश दिया गया है कि बड़ों की बातों का मान रखना चाहिए,
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नहीं तो मुर्गा और कौवा की तरह सजा भुगतनी पड़ सकती है।
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