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एक घने जंगल में 'ज्ञान का पेड़' नाम से प्रसिद्ध एक पेड़ था, जिसके फलों को खाने से असीम ज्ञान की प्राप्ति होती थी। यह फल केवल पूर्णिमा की रात को चमकते थे।
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जंगल के जानवर इस पेड़ की बहुत इज्जत करते थे और इसकी सुरक्षा में कोई कसर नहीं छोड़ते थे।
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टिंकू नाम का एक नटखट बंदर, पूर्णिमा की रात को इस पेड़ का फल चखने की सोचता है ताकि वह सबसे चतुर बंदर बन सके।
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जब टिंकू पेड़ के पास पहुंचता है, तो वह जानवरों की एक सभा को गंभीर चर्चा करते हुए देखता है। उन्हें पता चलता है कि एक शातिर लोमड़ी ने जंगल में खाई खोद दी है।
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रब्बी नाम के समझदार खरगोश और चतुर गिलहरी सिक्की ने सभी जानवरों को इकट्ठा करके लोमड़ी की चालाकी का मुकाबला करने की योजना बनाई।
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टिंकू को अपने दोस्तों की चिंता सताने लगी और उसने भी योजना में योगदान देने का फैसला किया। उसने सभी से माफी मांगी और सहयोग का वादा किया।
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सभी जानवरों ने मिलकर खाई को भर दिया और लोमड़ी की योजना को विफल कर दिया।
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इस सफलता का जश्न मनाया गया और टिंकू को उसके सहयोग के लिए धन्यवाद दिया गया।
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कहानी से बच्चों को यह सिखने को मिलता है कि सहयोग और टीमवर्क से किसी भी समस्या का सामना किया जा सकता है।
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