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इस प्रेरक कथा का आरंभ एक गहरे संदेश से होता है, जो हमें जीवन के मूल्यों की ओर ले जाता है, विशेषकर जब समाज में हिंसा और अलगाव का माहौल हो।
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कहानी में मुख्य पात्र कुख्यात डाकू अंगुलिमाल है, जो लोगों को मारकर उनकी अंगुलियों की माला बनाता था और उसने 100 अंगुलियाँ एकत्र करने की प्रतिज्ञा की थी।
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गौतम बुद्ध की शिक्षाएँ इस कहानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जब वे अंगुलिमाल के रास्ते से गुजरते हैं और उसे अहिंसा का पाठ पढ़ाते हैं।
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बुद्ध के साथ बातचीत के दौरान, अंगुलिमाल को एहसास होता है कि किसी चीज़ को तोड़ना आसान है, लेकिन उसे जोड़ना कठिन है।
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बुद्ध की गहन बातें अंगुलिमाल के हृदय में गहरी छाप छोड़ती हैं, जिससे वह अपने हिंसक मार्ग को छोड़कर शांति और सृजन के मार्ग पर चलने का निर्णय लेता है।
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अंगुलिमाल अपनी तलवार फेंक देता है और बुद्ध से दीक्षा लेकर संन्यास का रास्ता अपनाता है, यह दिखाता है कि परिवर्तन संभव है।
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इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि हिंसा करना सरल है, लेकिन किसी को जोड़ना और सृजन करना कठिन है, और सृजन करने वाला ही वास्तव में महान होता है।
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कहानी यह भी दर्शाती है कि जो विनाश करता है, वह अंधेरे का साथी होता है,
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जबकि जोड़ने और सृजन करने वाला प्रकाश का मार्गदर्शक होता है।
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