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यह कहानी रमेश नामक एक युवक की है, जो इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था और अपनी पढ़ाई पर गर्व महसूस करता था, लेकिन छोटे कामों को महत्व नहीं देता था।
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रमेश के पिताजी की स्टेशनरी की एक छोटी सी दुकान थी, जिसे उनके बीमार होने पर रमेश को संभालना पड़ा। रमेश इसे अपने स्तर से नीचे का काम मानता था।
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एक दिन, जब रमेश एक बड़ी कंपनी में इंटरव्यू देने गया, तो उसने देखा कि एक सफाईकर्मी पार्किंग एरिया में कूड़ा उठा रहा था। रमेश ने उसकी मदद करने का निर्णय लिया।
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सफाईकर्मी दरअसल कंपनी के मालिक, मिस्टर गुप्ता थे, जो यह देखना चाहते थे कि उनके कर्मचारी और अन्य लोग छोटे काम करने वालों का कितना सम्मान करते हैं।
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रमेश ने अपनी पढ़ाई और घमंड को किनारे रखकर सफाईकर्मी की मदद की, जिससे उसकी मानवता और काम के प्रति सम्मान सामने आया।
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इंटरव्यू के दौरान, मिस्टर गुप्ता ने रमेश की इस मदद की प्रशंसा की और उसे नौकरी देने का निर्णय किया, यह दिखाते हुए कि छोटी चीज़ों का सम्मान करना महत्वपूर्ण है।
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इस कहानी से यह सीख मिलती है कि कोई भी काम छोटा नहीं होता और हर काम का सम्मान करना चाहिए, जिससे आत्म-सम्मान और सफलता मिलती है।
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कहानी इस बात पर जोर देती है कि ईमानदारी और लगन से किया गया हर काम महत्वपूर्ण होता है
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और किसी भी बड़ी डिग्री या धन से अधिक मूल्यवान होता है।
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