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यह कहानी प्रेमपुरी नामक गाँव के एक दयालु लड़के आदित्य की है, जो सूखे के दौरान भी अपनी दया और उदारता नहीं छोड़ता।
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गाँव में सूखा पड़ने के बाद लोग स्वार्थी हो गए थे, लेकिन आदित्य ने भूखे लोगों और जानवरों की मदद करना नहीं छोड़ा।
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आदित्य ने अपनी आधी रोटी एक भूखी बूढ़ी औरत को दे दी और प्यासे जानवरों को पानी पिलाया, जिससे गाँव के लोग उसे मूर्ख समझते थे।
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गाँव के पास सूखी नदी के किनारे एक पुराना मंदिर था, जिसे आदित्य ने अपनी छोटी मटकी से पानी अर्पित करके साफ किया।
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एक दिन, आदित्य ने एक घायल हिरन को अपनी मटकी का सारा पानी पिलाया, जिससे उसकी मटकी खाली हो गई, लेकिन उसके मन में शांति थी।
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जब आदित्य मंदिर के पास पहुँचा, तो देवी मातंगी की मूर्ति चमकने लगी और आसमान से बारिश होने लगी, जिससे गाँव की सूखी नदी फिर से भर गई।
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गाँव वालों ने आदित्य की दया और प्रेम से प्रेरणा लेकर अपनी स्वार्थी सोच पर शर्मिंदगी महसूस की और उससे माफी मांगी।
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कहानी हमें सिखाती है कि निस्वार्थ दयालुता का फल हमेशा मीठा होता है और कठिनाई के समय में एक-दूसरे की मदद करना सच्ची भक्ति है।
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दयालुता से समाज में प्रेम और सद्भाव फैलता है, और यह कहानी बच्चों के लिए प्रेरणादायक है, जो सिखाती है कि सच्ची दया का महत्व क्या है।
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आदित्य की कहानी हमें यह भी सिखाती है कि जीवन में कितनी भी मुश्किलें आएं, हमें अपनी अच्छाई नहीं छोड़नी चाहिए।
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